शैव तथा भागवत धर्म Previous Year Questions
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Shaiva, Bhagwat Religion MCQs
1. प्राचीन भारत के विश्वोत्पत्ति (Cosmogonic) विषयक धारणाओं के अनुसार, चार युगों के चक्र का क्रम इस प्रकार है-
(a) द्वापर, कृत, त्रेता और कलि
(b) कृत, द्वापर, त्रेता और कलि
(c) कृत, त्रेता, द्वापर और कलि
(d) त्रेता, द्वापर, कलि और कृत
उत्तर-(c)
I.A.S. (Pre) 1996
प्राचीन भारत की विश्वोत्पत्ति विषयक धारणाओं के अनुसार, चार युगों के चक्र का क्रम इस प्रकार है-कृत (सतयुग), त्रेता, द्वापर एवं कलियुग ।
2. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन भारत में शैव संप्रदाय था ?
(a) आजीवक
(b) मत्तमयूर
(c) मयमत
(d) ईशानशिवगुरुदेवपद्धति
I.A.S. (Pre) 1996
उत्तर-(b)
प्राचीन भारत में मत्तमयूर नामक शैव संप्रदाय का उल्लेख मिलता है।
3. अर्धनारीश्वर मूर्ति में आधा शिव तथा आधा पार्वती प्रतीक है-
(a) पुरुष और नारी का योग
(b) देवता और देवी का योग
(c) देव और उसकी शक्ति का योग
(d) उपर्युक्त किसी का नहीं
उत्तर-(c)
U.P.P.C.S. (Pre) 1997
प्राचीन काल में अर्द्धनारीश्वर के रूप में भी शिव की कल्पना की गई, जो पुरुष एवं प्रकृति अथवा देव और उसकी शक्ति के योग को दर्शाता है। शिव और पार्वती की संयुक्त मूर्तियां गुप्त युग में और उसके परवर्ती युग में विशेष रूप से उकेरी गईं। इसी संयोग | का वर्णन कालिदास ने कुमारसम्भवम् में अत्यंत यत्नपूर्वक किया है। शिव और पार्वती का परस्पर इतना तादात्म्य हुआ कि दोनों की सन्निहित मूर्ति ‘अर्द्धनारीश्वर’ के रूप में समाज में चल पड़ी।
4. नयनार कौन थे?
(a) शैव
(c) वैष्णव
(b) शाक्त
(d) सूर्योपासक
उत्तर – (a)
U.P. U.D.A./L.D.A. (Pre) 2006
पूर्व मध्यकाल में भक्ति भावना का प्रचार-प्रसार मुख्यतः दक्षिण भारत में विशेषकर तमिल भाषी क्षेत्र में हुआ। तमिल भाषी क्षेत्र में भक्ति भावना को लोकप्रिय बनाने में दो संप्रदायों की प्रमुख भूमिका रही। भगवान विष्णु की उपासना करने वाले विष्णु भक्त अलवार कहलाए और शिव की उपासना करने वाले शिव भक्त नयनार कहलाए। इन्होंने ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत प्रेम और समर्पण से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया और जाति प्रथा एवं इसकी कठोरता का विरोध किया।
5. ‘नयनार’ कौन थे ?
(a) वैष्णव धर्मानुयायी
(b) शैव धर्मानुयायी
(c) शाक्त
(d) सूर्योपासक
U.P.R.O. /A.R.O. (Pre) 2014
उत्तर-(b)
उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें ।
6. निम्नलिखित में से कौन अलवार संत नहीं था ?
(a) पोयगई
(b) तिरुज्ञान
(c) पूडम
(d) तिरुमंगई
U.P. P.C.S. (Pre) 2013
उत्तर-(b)
पोयगई, पूडम एवं तिरुमंगई अलवार संत थे, जबकि तिरुज्ञान नयनार संत थे।
7. भागवत संप्रदाय के विकास में किसका देन अत्यधिक था ?
(a) पार्थियन
(b) हिंद-यूनानी लोग
(c) कुषाण
(d) गुप्त 39th B.P.S.C. (Pre) 1994
उत्तर- (d)
भागवत अथवा वैष्णव धर्म का चरमोत्कर्ष गुप्त राजाओं के शासनकाल में हुआ। गुप्त नरेश वैष्णव मतानुयायी थे तथा उन्होंने इसे अपना राजधर्म | बनाया था। अधिकांश गुप्त शासक परमभागवत’ की उपाधि धारण करते थे। विष्णु का वाहन ‘गरुड़’ गुप्तों का राजचिह्न था।
8. भागवत धर्म के प्रवर्तक थे-
(a) जनक
(b) कृष्ण
(c) याज्ञवल्क्य
(d) सूरदास R.A.S. / R.T.S. (Pre) 1993
उत्तर-(b)
परंपरानुसार भागवत धर्म के प्रवर्तक वृष्णि (सात्वत) वंशी कृष्ण थे, जिन्हें वसुदेव का पुत्र होने के कारण वासुदेव कृष्ण कहा जाता है। वे मूलतः मथुरा के निवासी थे। छांदोग्य उपनिषद में उन्हें देवकी – पुत्र कहा गया है तथा घोर अंगिरस का शिष्य बताया गया है।
9. निम्न में से किस ग्रंथ में सर्वप्रथम देवकी के पुत्र कृष्ण का वर्णन किया गया है ?
(a) महाभारत
(b) छांदोग्य उपनिषद
(c) अष्टाध्यायी
(d) भागवतपुराण R.A.S./R.T.S. (Pre) 1999
उत्तर-(b)
उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
10. वासुदेव कृष्ण की पूजा सर्वप्रथम किसने प्रारंभ की?
(a) भागवतों ने
(b) वैदिक आर्यों ने
(c) तमिलों ने
(d) आभीरों ने
U.P.P.C.S. (Pre) 1997
उत्तर – (a)
वैष्णव धर्म का प्रारंभिक रूप भागवत धर्म के अंतर्गत देवकी -पुत्र भगवान वासुदेव कृष्ण के पूजन में दर्शित होता है, जो संभवत: छठीं सदी ई.पू. के पहले स्थापित हो चुका था। वासुदेव जो कृष्ण का प्रारंभिक नाम था, पाणिनि के युग में प्रचलित था। उस युग में वासुदेव की उपासना करने वाले ‘वासुदेवक’ (भागवत) कहे जाते थे।
11. निम्नलिखित में से किस देवता को कला में हल लिए प्रदर्शित किया गया है ?
(a) कृष्ण
(c) कार्तिकेय
(b) बलराम
(d) मैत्रेय
उत्तर-(b)
U.P. P.C.S. (Mains) 2007
भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप कला में हल लिए कृष्ण के भाई बलराम को प्रदर्शित किया गया है। उन्हें हलधर के नाम से भी जाना जाता है।
12. भागवत संप्रदाय में भक्ति के रूपों की संख्या है-
(a) 7
(b) 8
(c) 9
(d) 10
U.P. U.D.A./L.D.A. (Pre) 2010
उत्तर- (c)
भागवत संप्रदाय में मोक्ष प्राप्ति के लिए नवधा भक्ति को मान्यता दी गई है।
13. हेलियोडोरस का बेसनगर अभिलेख संदर्भित है-
(a) संकर्षण तथा वासुदेव से
(b) संकर्षण तथा प्रद्युम्न से
(c) संकर्षण, प्रद्युम्न तथा वासुदेव से
(d) केवल वासुदेव से
उत्तर- (d)
I.A.S. (Pre) 1998
भागवत धर्म से संबद्ध प्रथम उपलब्ध प्रस्तर स्मारक विदिशा (बेसनगर) का गरुड़ स्तंभ है। इससे पता चलता है कि तक्षशिला के यवन राजदूत हेलियोडोरस ने भागवत धर्म ग्रहण किया तथा इस स्तंभ की स्थापना करवाकर उसकी पूजा की थी। इस पर उत्कीर्ण लेख में हेलियोडोरस को ‘भागवत’ तथा वासुदेव को ‘देवदेवस’ अर्थात ‘देवताओं का देवता’ कहा गया है।
14. भागवत धर्म से संबंधित प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य है-
(a) समुद्रगुप्त का इलाहाबाद अभिलेख
(b) हेलियोडोरस का बेसनगर अभिलेख
(c) स्कंदगुप्त का भितरी स्तंभलेख
(d) महरौली स्तंभ अभिलेख
U.P.P.C.S. (Spl.) (Mains) 2008
उत्तर-(b)
उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
15.
भागवत धर्म का ज्ञात सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य है-
(a) समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति
(b) गौतमी बलश्री का नासिक अभिलेख
(c) बेसनगर का गरुड़ स्तंभ
(d ) धनदेव का अयोध्या अभिलेख
उत्तर-(c)
Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2012
उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें ।
16. ‘बेसनगर अभिलेख’ का हेलियोडोरस कहां का निवासी था ?
(a) पुष्कलावती
(b) तक्षशिला
(c) साकल
(d) मथुरा
U.P. U.D.A./L.D.A. (Pre) 2010
उत्तर-(b)
उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें ।
17.
विष्णु के किस अवतार को सागर से पृथ्वी का उद्धार करते अंकित किया जाता है ? हुए
(a) कच्छप
(b) मत्स्य
(c) वाराह
(d) नृसिंह
U.P. U.D.A./L.D.A. (Spl.) (Pre) 2010 U.P. U.D.A./L.D.A. (Spl.) (Mains) 2010
उत्तर-(c)
भगवान विष्णु ने दैत्यराज हिरणाक्ष का वध करने के लिए वाराह रूप धारण किया था तथा उसके चंगुल से धरती को छुड़ाया था। पौराणिक चित्रों में वाराह भगवान धरती को अपने दांतों के ऊपर संतुलित कर सागर से निकालते हुए दर्शाए गए हैं। इस अवतार में मानव शरीर पर वाराह का सिर और चार हाथ हैं, जो कि भगवान विष्णु की तरह शंख, चक्र, गदा| और पद्म लिए हुए दैत्य हिरणाक्ष से युद्ध कर रहे हैं। अवतार क्रम में यह विष्णु का तीसरा अवतार माना गया है।
18. भारत में आस्तिक और नास्तिक संप्रदायों में कौन-सा विभेदक लक्षण है ?
(a) ईश्वरी सत्ता में आस्था
(b) पुनर्जन्म के सिद्धांत में आस्था
(c) वेदों की प्रामाणिकता में आस्था
(d) स्वर्ग तथा नरक की सत्ता में विश्वास
U.P.P.C.S. (Mains) 2005
उत्तर-(c)
राममूर्ति पाठक (भारतीय दर्शन की समीक्षात्मक रूपरेखा) के अनुसार, आस्तिक और नास्तिक संप्रदाय के वर्गीकरण का आधार कभी ‘वेद प्रमाण्य में विश्वास रहा है, तो कभी ‘ईश्वर की सत्ता में विश्वास । ‘परलोक की मान्यता’ भी इस वर्गीकरण का आधार रही है। किंतु ‘वेद – प्रमाण्य में विश्वास’ ही इस वर्गीकरण का सर्वसम्मत आधार बना। अर्थात आस्तिक संप्रदाय वे हैं, जो वेदों की प्रामाणिकता को मानते हैं तथा नास्तिक संप्रदाय वे हैं, जो वेदों की प्रामाणिकता को नहीं मानते हैं।
19. निम्नलिखित में से कौन मोक्ष के साधन के रूप में ज्ञान, कर्म तथा भक्ति को समान महत्व देता है ?
(a) अद्वैत वेदांत
(b) विशिष्टाद्वैतवाद वेदांत
(c) भगवद्गीता
(d) मीमांसा
U.P.P.C.S. (Mains) 2005
उत्तर-(c)
गीता में ज्ञान, कर्म तथा भक्ति को समान महत्व दिया गया है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा निम्नलिखित श्लोक में इन तीनों का महत्व प्रतिपादित किया गया है-
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः ।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासने ||
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसार सागरात् ।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशिचेतसाम् ॥
श्लोक के माध्यम से कर्म, भक्ति तथा ज्ञान की महत्ता को प्रतिपादित किया है। जबकि अद्वैत वेदांत में शंकराचार्य ने केवल ब्रह्म को सत्य माना है, ईश्वर को नहीं। वेदांत में केवल भक्ति की प्रधानता है तथा विशिष्टाद्वैतवाद वेदांत में भी केवल भक्ति को महत्व दिया गया है। मीमांसा केवल कर्म का प्रतिपादन करता है।
20.
अधोलिखित में से कौन एक गीता की मुख्य शिक्षा है ?
(a) कर्मयोग
(b) ज्ञानयोग
(c) भक्तियोग
(d) निष्काम कर्मयोग
(e) अस्पर्श योग
Chhattisgarh P.S.C. (Pre) 2017
उत्तर- (d)
गीता का कर्मयोग निष्काम कर्मयोग है। निष्काम कर्मयोग का अर्थ है कि हम कर्म को सदैव साध्य के रूप में देखें, उसे कभी भी साधन के रूप में न ग्रहण करें। हम कर्म तो करें, किंतु कर्म फल में आसक्ति न रखें। गीता के निष्काम कर्मयोग में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का समन्वय होता है। गीता की मुख्य शिक्षा निष्काम कर्मयोग का आदेश है। गीता स्वयं विभिन्न योगमार्गों का तुलनात्मक अध्ययन करके निष्काम कर्मयोग की श्रेष्ठता को स्वीकार करती है। आधुनिक युग में लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी आदि विचारकों ने कर्मयोग विशेषतः निष्काम कर्मयोग को ही गीता की मुख्य शिक्षा स्वीकार किया है।
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