Karachi Session of Congress (1931) Previous Year Questions
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कराची अधिवेशन, 1931 – मुख्य तथ्य (संक्षेप में):
गांधी-इर्विन समझौते (दिल्ली समझौते) को अनुमोदन देने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कराची अधिवेशन 29 से 31 मार्च, 1931 को आयोजित हुआ।
इस अधिवेशन की अध्यक्षता सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी।
इस अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस ने दो ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किए:
मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रस्ताव
राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम से संबंधित प्रस्ताव
इन प्रस्तावों का मसौदा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तैयार किया था, और एम.एन. राय ने सहयोगी भूमिका निभाई थी।
अधिवेशन के दौरान गांधीजी की विचारधारा को लेकर कुछ विरोध भी हुआ, जिस पर गांधीजी ने कहा था:
“गांधी मर सकता है, गांधीवाद नहीं।”यह पहला अवसर था जब कांग्रेस ने औपचारिक रूप से ‘पूर्ण स्वराज्य’ (Complete Independence) की स्पष्ट परिभाषा दी।
सुभाष चंद्र बोस ने इस अधिवेशन को गांधीजी की लोकप्रियता और सम्मान की चरम सीमा बताया था।
कांग्रेस का कराची अधिवेशन (1931)
1. निम्नलिखित में से किसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन का सभापतित्व किया था?
[U.P. P.C.S. (Pre) 2005]
(a) जवाहरलाल नेहरू
(b) जे.एम. सेनगुप्ता
(c) एस.सी. बोस
(d) वल्लभभाई पटेल
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उत्तर – (d) वल्लभभाई पटेल
1931 में गांधी-इर्विन समझौते को कांग्रेस की स्वीकृति देने के लिए कराची अधिवेशन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी।
यह अधिवेशन 29–31 मार्च 1931 को आयोजित हुआ था।
यहीं पर पहली बार कांग्रेस ने मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम को पारित किया।
गांधीजी ने इस अधिवेशन में आलोचकों से कहा – “गांधी मर सकता है, गांधीवाद नहीं।”
अन्य विकल्पों की जानकारी:
जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिवेशन के लिए मूल अधिकारों का मसौदा तैयार किया था, लेकिन अध्यक्ष नहीं थे।
जे.एम. सेनगुप्ता और सुभाष बोस बाद के अधिवेशनों से जुड़े थे।
2. 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन के लिए, जिसकी अध्यक्षता सरदार पटेल कर रहे थे, किसने मूल अधिकारों तथा आर्थिक कार्यक्रम पर संकल्प प्रारूपित किया था?
[I.A.S. (Pre) 2010, 2005]
(a) महात्मा गांधी
(b) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(c) डॉ. राजेंद्र प्रसाद
(d) डॉ. बी.आर. अम्बेडकर
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उत्तर – (b) पंडित जवाहरलाल नेहरू
कराची अधिवेशन, 1931 में मौलिक अधिकारों और आर्थिक कार्यक्रम से संबंधित प्रस्ताव का प्रारूप पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तैयार किया था।
यह प्रस्ताव आधुनिक भारत के संविधान की आधारशिला माना जाता है।
इसमें न्याय, समानता, धर्मनिरपेक्षता, शिक्षा और श्रमिक अधिकार जैसी बातें शामिल थीं।
एम.एन. राय ने भी इसमें सहायक की भूमिका निभाई थी।
अन्य विकल्पों की जानकारी:
गांधीजी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस विषय में सक्रिय थे, पर उन्होंने मसौदा तैयार नहीं किया।
डॉ. अम्बेडकर उस समय कांग्रेस से नहीं जुड़े थे।
3. निम्नलिखित में से किसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन (1931) को ‘महात्मा गांधी की लोकप्रियता और सम्मान की पराकाष्ठा’ माना है?
[U.P.P.C.S. (Pre) 2014]
(a) एस.सी. बोस
(b) पट्टाभि सीतारमैय्या
(c) सरदार वल्लभभाई पटेल
(d) सरदार किशन सिंह
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उत्तर – (a) एस.सी. बोस
सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के कराची अधिवेशन (1931) को “महात्मा गांधी की लोकप्रियता और सम्मान की पराकाष्ठा” माना।
इस अधिवेशन में गांधी-इर्विन समझौते को कांग्रेस द्वारा स्वीकार किया गया था।
इस समय गांधीजी का प्रभाव और नेतृत्व पूरे देश में सर्वोच्च स्तर पर था।
यद्यपि कुछ क्रांतिकारी भगत सिंह की फांसी को न रोक पाने के कारण आलोचना कर रहे थे, फिर भी गांधीजी की सार्वजनिक प्रतिष्ठा अपार थी।
अन्य विकल्प गलत हैं – यह विशिष्ट कथन न पटेल ने, न सीतारमैय्या और न ही किशन सिंह ने कहा।
4. भारतीय स्वाधीनता संघर्ष से संबंधित निम्नलिखित घटनाओं को उनके सही क्रम में रखकर सही कूट चुनिए–
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कराची अधिवेशन
भगत सिंह को फांसी
गांधी-इर्विन समझौता
[U.P. P.C.S. (Mains) 2006, Pre 2009, Mains 2013]
(a) 1, 2, 3, 4
(b) 2, 3, 1, 4
(c) 4, 3, 2, 1
(d) 3, 4, 2, 1
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उत्तर – (c) 4, 3, 2, 1
घटनाओं का सही कालक्रम:
गांधी-इर्विन समझौता – 5 मार्च, 1931
भगत सिंह को फांसी – 23 मार्च, 1931
कराची अधिवेशन – 29-31 मार्च, 1931
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – 7 सितंबर, 1931
स्पष्टीकरण:
गांधी-इर्विन समझौते के बाद गांधीजी को जेल से छोड़ा गया।
भगत सिंह की फांसी के बाद जनता में असंतोष फैला, लेकिन कांग्रेस ने समझौते को कराची अधिवेशन में मंजूरी दी।
गांधीजी फिर द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने लंदन गए।
5. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित निम्नलिखित घटनाओं को पढ़ें–
राजगुरु को फांसी
गांधी-इर्विन समझौता
घटनाओं का सही कालानुक्रम नीचे दिए गए कूट से पता करें–
[U.P. P.C.S. (Mains) 2009]
(a) 2, 1
(b) 1, 2
(c) 2, 3, 1
(d) 1, 3, 2
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उत्तर – (a) 2, 1
गांधी-इर्विन समझौता हुआ था 5 मार्च, 1931 को, जबकि राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव को 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई थी।
यह ऐतिहासिक क्रम बताता है कि गांधी-इर्विन समझौता पहले हुआ और क्रांतिकारियों को फांसी बाद में दी गई, जिससे जनता में भारी आक्रोश फैला।
यह भी कारण बना कि गांधीजी की आलोचना हुई, क्योंकि वह भगत सिंह की फांसी नहीं रुकवा पाए।
इसलिए सही कालानुक्रम: गांधी-इर्विन समझौता → राजगुरु की फांसी।
6. भारतीय स्वाधीनता संग्राम से संबंधित निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिए–
गांधी-इर्विन समझौता
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कराची अधिवेशन
भगत सिंह की फांसी
पूना समझौता
घटनाओं का सही कालानुक्रम चुनिए–
[U.P. P.C.S. (Spl.) (Mains) 2004]
(a) 1, 3, 4, 2
(b) 1, 2, 3, 4
(c) 4, 2, 3, 1
(d) 1, 3, 2, 4
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उत्तर – (d) 1, 3, 2, 4
घटनाओं का सही क्रम और तिथि निम्नलिखित है:
गांधी-इर्विन समझौता – 5 मार्च, 1931
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी – 23 मार्च, 1931
कराची अधिवेशन – 29–31 मार्च, 1931
पूना समझौता – 24 सितंबर, 1932
गांधी-इर्विन समझौते के तुरंत बाद भगत सिंह को फांसी दी गई,
फिर कराची अधिवेशन में समझौते को कांग्रेस की मंजूरी दी गई,
एक वर्ष बाद पूना समझौता हुआ जिसमें डॉ. अंबेडकर और गांधीजी के बीच दलितों के प्रतिनिधित्व पर समझौता हुआ।
7. कराची अधिवेशन (1931) में मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव को तैयार करने में किस विचारक ने जवाहरलाल नेहरू की सहायता की थी?
[BPSC आधारित तथ्यात्मक प्रश्न]
(a) तेज बहादुर सप्रू
(b) एम.एन. रॉय
(c) बालमुकुंद गुप्त
(d) महादेव देसाई
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उत्तर – (b) एम.एन. रॉय
1931 के कराची अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार एक संगठित और सैद्धांतिक “मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम” का प्रस्ताव पारित किया।
इस प्रस्ताव को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तैयार किया था।
इसमें एम.एन. रॉय ने प्रमुख भूमिका निभाई थी, जिन्होंने समाजवादी और श्रमिक-हितैषी दृष्टिकोण को शामिल करने में सहायता की।
यह प्रस्ताव स्वतंत्र भारत के संविधान की दिशा में पहला ठोस कदम माना जाता है।
अन्य विकल्पों की जानकारी:
तेज बहादुर सप्रू गांधी-इर्विन समझौते की मध्यस्थता में सक्रिय थे।
महादेव देसाई गांधीजी के सचिव थे।
8. कांग्रेस के कराची अधिवेशन (1931) में पारित आर्थिक कार्यक्रम में निम्नलिखित में से कौन-सा बिंदु शामिल था?
[U.P. P.C.S. (Mains) आधारित विश्लेषणात्मक प्रश्न]
(a) निजी संपत्ति का पूर्ण उन्मूलन
(b) किसानों के लिए भूमि सुधार
(c) धर्म-आधारित आरक्षण
(d) भारत को राष्ट्रसंघ की सदस्यता दिलाना
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उत्तर – (b) किसानों के लिए भूमि सुधार
1931 के कराची अधिवेशन में पारित आर्थिक कार्यक्रम में निम्नलिखित बिंदु शामिल थे:
किसानों के लिए भूमि सुधार,
श्रमिकों के न्यूनतम वेतन,
सभी के लिए शिक्षा और रोजगार,
न्याय का अधिकार,
महिलाओं को समान अधिकार,
अस्पृश्यता का उन्मूलन।
इस कार्यक्रम ने भारत के भविष्य के समाजवादी झुकाव वाले संविधान की नींव रखी।
अन्य विकल्प:
निजी संपत्ति को पूरी तरह समाप्त करने की बात नहीं थी।
धर्म आधारित आरक्षण उस समय की कांग्रेस नीति का हिस्सा नहीं था।
9. कराची अधिवेशन (1931) में पारित ‘मौलिक अधिकारों’ के प्रस्ताव में निम्नलिखित में से क्या शामिल नहीं था?
[UPPCS / BPSC स्तर का विश्लेषणात्मक प्रश्न]
(a) धर्म, भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता
(b) समान नागरिक संहिता
(c) मजदूरी की सुरक्षा
(d) सभी को नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा
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उत्तर – (b) समान नागरिक संहिता
1931 के कराची अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा पारित मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव में नागरिक स्वतंत्रताओं, शिक्षा, रोजगार, मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा आदि से जुड़े अधिकारों को सम्मिलित किया गया था:
धर्म, भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता
शोषण और असमानता का विरोध
प्राथमिक शिक्षा सबके लिए मुफ्त एवं अनिवार्य
महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार
श्रमिकों को सम्मानजनक मजदूरी और कार्य के घंटे
लेकिन समान नागरिक संहिता का उल्लेख इसमें नहीं था; यह मुद्दा बाद में भारतीय संविधान सभा की चर्चाओं में प्रमुख हुआ।
10. कराची अधिवेशन को स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रस्तावना का आधार क्यों माना जाता है?
[UPPSC / IAS स्तर का अवधारणात्मक प्रश्न]
(a) इसमें दो राष्ट्र सिद्धांत पारित हुआ था
(b) इसमें ‘संपूर्ण स्वराज’ की घोषणा की गई थी
(c) इसमें मौलिक अधिकारों और आर्थिक कार्यक्रम का उल्लेख किया गया था
(d) इसमें अंग्रेजों के साथ समझौता पारित किया गया था
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उत्तर – (c) इसमें मौलिक अधिकारों और आर्थिक कार्यक्रम का उल्लेख किया गया था
कराची अधिवेशन (1931) को आधुनिक भारत के संविधान की प्रस्तावना का आधार इस कारण माना जाता है क्योंकि:
इस अधिवेशन में “मौलिक अधिकारों” और “राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम” पर जो प्रस्ताव पारित हुए, उनमें नागरिक स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और न्याय जैसे विषयों को प्रमुखता दी गई।
इन प्रस्तावों में धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और स्त्री-पुरुष समानता जैसी संवैधानिक अवधारणाओं की झलक थी।
ये बिंदु भारतीय संविधान (1950) की प्रस्तावना और मौलिक अधिकारों के मूल स्रोत बन गए।
इसलिए यह अधिवेशन भविष्य के भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की वैचारिक नींव माना जाता है।
11. कराची अधिवेशन (1931) में कांग्रेस द्वारा निम्नलिखित में से किस सामाजिक कुरीति के उन्मूलन पर विशेष ज़ोर दिया गया था?
[UPPCS / BPSC विश्लेषणात्मक प्रश्न]
(a) बाल विवाह
(b) दहेज प्रथा
(c) अस्पृश्यता
(d) विधवा पुनर्विवाह
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उत्तर – (c) अस्पृश्यता
कराची अधिवेशन, 1931 में कांग्रेस ने मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कई सामाजिक सुधारों को भी अपनी नीति का भाग बनाया।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण था अस्पृश्यता उन्मूलन।
यह पहली बार था जब कांग्रेस ने सामाजिक समानता की बात करते हुए यह कहा कि “अस्पृश्यता एक अन्याय है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए।”
यह निर्णय महात्मा गांधी के ‘हरिजन सेवा’ आंदोलन से प्रेरित था।
अन्य विकल्पों पर अधिवेशन में कोई स्पष्ट प्रस्ताव पारित नहीं किया गया था, जबकि अस्पृश्यता को एक प्रमुख सामाजिक बुराई के रूप में चिन्हित किया गया।
12. कराची अधिवेशन (1931) में पारित आर्थिक प्रस्तावों में से कौन-सा बिंदु उस समय के लिए सबसे क्रांतिकारी माना गया?
[IAS / BPSC स्तर]
(a) सामूहिक खेती की योजना
(b) मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी की गारंटी
(c) राज्य द्वारा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण
(d) किसानों के लिए कर माफी
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उत्तर – (b) मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी की गारंटी
1931 के कराची अधिवेशन में पारित आर्थिक कार्यक्रम में कई ऐसे बिंदु थे जो उस समय के लिए अत्यंत प्रगतिशील और क्रांतिकारी माने गए।
इन बिंदुओं में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी,
श्रम के घंटे निश्चित करना,
श्रमिकों को संघ बनाने का अधिकार,
और महिलाओं को समान वेतन जैसी बातों को शामिल किया गया।
मजदूरी की सुरक्षा उस युग में औद्योगिक वर्ग संघर्ष और ब्रिटिश पूंजीवाद के खिलाफ एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश था।
यह प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 43 की प्रेरणा भी बना।
13. कराची अधिवेशन (1931) के मौलिक अधिकार प्रस्ताव के अंतर्गत महिलाओं को कौन-से अधिकार की विशेष रूप से गारंटी दी गई थी?
[UPPSC / BPSC विषय आधारित प्रश्न]
(a) समान वेतन का अधिकार
(b) मताधिकार का अधिकार
(c) संपत्ति का अधिकार
(d) मातृत्व अवकाश
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उत्तर – (a) समान वेतन का अधिकार
1931 के कराची अधिवेशन में पारित मौलिक अधिकार प्रस्ताव में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए।
यह एक क्रांतिकारी कदम था, क्योंकि उस समय भारत ही नहीं, विश्व में भी बहुत कम देश इस सिद्धांत को अपनाते थे।
इससे यह संदेश गया कि कांग्रेस स्वतंत्र भारत में लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देगी।
अन्य विकल्पों की स्थिति:
मताधिकार की बात स्वतंत्रता के बाद संविधान में सुनिश्चित हुई।
संपत्ति अधिकार और मातृत्व अवकाश जैसे प्रावधान तब शामिल नहीं थे।
14. कराची अधिवेशन में पारित प्रस्तावों का मुख्य उद्देश्य क्या था?
[IAS / PCS अवधारणात्मक प्रश्न]
(a) समाजवाद की स्थापना
(b) ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्रता की घोषणा
(c) स्वतंत्र भारत के लिए सामाजिक-आर्थिक ढांचे की रूपरेखा देना
(d) गांधी-इर्विन समझौते को खारिज करना
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उत्तर – (c) स्वतंत्र भारत के लिए सामाजिक-आर्थिक ढांचे की रूपरेखा देना
कराची अधिवेशन, 1931 का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह था कि इसमें पहली बार स्वतंत्र भारत के भविष्य के लिए एक सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण की स्पष्ट रूपरेखा दी गई।
इसमें मौलिक अधिकार,
समानता, शिक्षा, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा,
और आर्थिक न्याय जैसे सिद्धांतों को अपनाया गया।
यह प्रस्ताव स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रेरणा बना।
अन्य विकल्प जैसे समाजवाद की स्थापना या स्वतंत्रता की घोषणा इस अधिवेशन का प्रत्यक्ष उद्देश्य नहीं थे।
15. कराची अधिवेशन (1931) में पारित प्रस्तावों में संविधान निर्माण के किस सिद्धांत की झलक दिखाई देती है?
[UPPSC / BPSC विश्लेषणात्मक प्रश्न]
(a) दो राष्ट्र सिद्धांत
(b) आर्थिक उदारीकरण
(c) लोकतंत्र और सामाजिक न्याय
(d) राजशाही का समर्थन
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उत्तर – (c) लोकतंत्र और सामाजिक न्याय
1931 के कराची अधिवेशन में पारित प्रस्तावों ने भारत के भविष्य के संविधान के लिए कई मूलभूत सिद्धांत प्रस्तुत किए, जैसे:
लोकतांत्रिक अधिकार – भाषण, अभिव्यक्ति, प्रेस की स्वतंत्रता
सामाजिक न्याय – सभी को समान अवसर, शिक्षा और रोजगार
अस्पृश्यता का उन्मूलन,
महिलाओं के लिए समान अधिकार
इन प्रस्तावों ने भारतीय संविधान में “न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” जैसे शब्दों की नींव डाली।
इसलिए कराची अधिवेशन को भारतीय संविधान की प्रारंभिक रूपरेखा का आधार माना जाता है।
16. कराची अधिवेशन (1931) में निम्नलिखित में से किस क्षेत्र को विशेष रूप से आर्थिक सुरक्षा देने की बात कही गई थी?
[BPSC विशिष्ट प्रश्न]
(a) उद्योगपति वर्ग
(b) विदेशी निवेशक
(c) कृषि श्रमिक वर्ग
(d) राजाओं और जमींदारों
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उत्तर – (c) कृषि श्रमिक वर्ग
कराची अधिवेशन में पारित राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम में मजदूरों और किसानों के हितों की रक्षा को प्रमुख स्थान दिया गया।
इसमें कृषि श्रमिकों को उचित मजदूरी,
शोषण से मुक्ति,
और सामाजिक सुरक्षा की बात कही गई थी।
यह स्पष्ट कर दिया गया था कि स्वतंत्र भारत का विकास केवल औद्योगिक नहीं, बल्कि ग्रामीण और कृषक हित आधारित होगा।
अन्य विकल्पों में से उद्योगपतियों या विदेशी निवेशकों के लिए कोई विशेष सुरक्षा की बात नहीं की गई थी।
17. कराची अधिवेशन (1931) में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत किस राजनीतिक स्वतंत्रता को प्रमुखता से स्वीकार किया गया था?
[UPPSC / BPSC स्तर]
(a) न्यायपालिका की स्वतंत्रता
(b) धार्मिक प्रचार की स्वतंत्रता
(c) संगठनों की स्वतंत्रता
(d) सरकार द्वारा नियुक्ति की स्वतंत्रता
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उत्तर – (c) संगठनों की स्वतंत्रता
कराची अधिवेशन, 1931 में पारित मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव में नागरिक स्वतंत्रताओं को स्पष्ट किया गया था, जिनमें से एक थी –
“संगठनों की स्वतंत्रता” (Freedom of Association)।
इसका उद्देश्य था कि नागरिक शांतिपूर्वक संगठन, सभा और आंदोलन कर सकें।
यह स्वतंत्रता स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र के आधारभूत स्तंभ के रूप में आज भी मान्य है।
अन्य विकल्पों की स्थिति:
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नियुक्तियों से संबंधित प्रावधान संविधान के समय आए।
धार्मिक प्रचार की स्वतंत्रता का उल्लेख हुआ, पर उतनी प्रमुखता नहीं दी गई जितनी संगठनों को।
18. कराची अधिवेशन में पारित प्रस्तावों की सबसे बड़ी आलोचना क्या थी?
[BPSC / IAS मुख्य परीक्षा उन्मुख प्रश्न]
(a) इन प्रस्तावों में किसान मुद्दे नहीं थे
(b) प्रस्ताव बहुत आदर्शवादी थे और व्यावहारिक नहीं
(c) मुस्लिम लीग से कोई समन्वय नहीं था
(d) गांधी-इर्विन समझौते को रद्द नहीं किया गया
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उत्तर – (b) प्रस्ताव बहुत आदर्शवादी थे और व्यावहारिक नहीं
कराची अधिवेशन (1931) में पारित मौलिक अधिकारों और आर्थिक कार्यक्रम को भले ही ऐतिहासिक बताया गया, लेकिन उस समय कई राजनीतिक विचारकों और ब्रिटिश अधिकारियों ने इसकी आलोचना यह कहकर की:
ये प्रस्ताव बहुत अधिक आदर्शवादी और सैद्धांतिक हैं।
भारत की उस समय की आर्थिक व प्रशासनिक परिस्थिति में इन्हें लागू करना संभव नहीं था।
कई प्रस्तावों को बिना कार्य योजना के प्रस्तुत किया गया।
हालांकि बाद में इन्हीं सिद्धांतों ने भारतीय संविधान को दिशा दी, लेकिन तत्कालीन आलोचनाएं इन्हें व्यवहारिक से अधिक वैचारिक मानती थीं।
19. कराची अधिवेशन में पारित मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव में निम्नलिखित में से किस अधिकार को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया था?
[BPSC / UPPCS प्रश्न]
(a) निजी संपत्ति के अधिकार की गारंटी
(b) धार्मिक करों का उन्मूलन
(c) जीवन और व्यक्ति की सुरक्षा का अधिकार
(d) बाल विवाह का निषेध
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उत्तर – (c) जीवन और व्यक्ति की सुरक्षा का अधिकार
1931 के कराची अधिवेशन में पारित मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव में यह स्पष्ट किया गया कि प्रत्येक नागरिक को:
“जीवन और व्यक्ति की सुरक्षा” का अधिकार होना चाहिए,
साथ ही न्यायिक संरक्षण,
धार्मिक, भाषिक, अभिव्यक्ति व संगठन की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित होनी चाहिए।
यह प्रस्ताव आज के भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (Right to Life and Personal Liberty) का बीज था।
अन्य विकल्पों में उल्लिखित बिंदु उस समय के प्रस्तावों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं थे।
20. कराची अधिवेशन में पारित आर्थिक प्रस्तावों का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
[UPPSC / BPSC विषयगत प्रश्न]
(a) औद्योगिक पूंजीपतियों को राहत देना
(b) ज़मींदारी प्रथा को स्थायित्व देना
(c) श्रमिकों और किसानों के अधिकारों की रक्षा करना
(d) ब्रिटिश व्यापारियों को विशेष सुविधा देना
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उत्तर – (c) श्रमिकों और किसानों के अधिकारों की रक्षा करना
1931 कराची अधिवेशन के आर्थिक प्रस्तावों का मुख्य उद्देश्य था:
श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी,
काम के निश्चित घंटे,
किसानों पर लगान में कमी,
और शोषण से मुक्ति।
ये प्रस्ताव स्वतंत्र भारत के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में पहला संगठित प्रयास थे।
ब्रिटिश पूंजीवाद और ज़मींदारी प्रथा के विरुद्ध यह एक वैचारिक चुनौती थी।
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